Friday, June 25, 2010

समाज कैसे बदलता है

समाज कैसे बदलता है के प्रश्न पर हमारे देश में ही नहीं सारी दुनिया में दो तरह के विचार पाए जाते हैं |ये दृष्टिकोण एक दूसरे के विरोधी हैं | कुछ लोगों का कहना है क़ि इश्वर ने इस संसार को बनाया है |वही इसे चलता भी है और अपनी मर्जी के मुताबिक इसे बदलता भी रहता है | जिस तरह एक कुशल कारीगर सुन्दर सुन्दर खिलोने बनता है ,उसी तरह सबसे पहले और सबसे बेहतरीन निर्माता इश्वर ने भी यह खूबसूरत दुनिया बनाई है और जिस तरह एक बच्चा अपने खिलोनों से खेलता रहता है ,उसी तरह इश्वर भी इंसानों के रूप में अपने खिलोनों से खिलवाड़ करता रहता है | इस प्रकार इस संसार का इस हमारे मानव समाज का आधार इश्वर है - यदि हम गरीब हैं , दुखी हैं ,परेशान हैं ,तो जरूर हमने पिछले जनम में बुरे कर्म किये होंगे जिनका बदला हमें इस जनम में देना पड़ रहा है और चूंकि हम इस विधान और व्यवस्था में कोई भी दखलंदाजी नहीं कर सकते, जो कुछ करता है -दुनिया का मालिक ईश्वर ही करता है अत: हमें अपने दुःख दरद से छुटकारे के लिए उसी क़ि शरण में जाना चाहिए , उसी क़ि उपासना करनी चाहिए ,वही हमें इन मुशिबतों से बचा सकता है | आदमी को जीरो और ईश्वर को हीरो मानने वाली इस विचारधारा के समर्थक क्यों परेशान हैं गोत्र विवाह पर| इस विचार के अधर पर सब ईश्वर क़ि माया है |इस विचार धारा के एकदम विपरीत एक मान्यता यह भी है क़ि संसार में आदमी से पहले सिर्फ कुदरत थी और इन्सां ने ही कुदरत से संघर्ष करके अपनी मेहनत के द्वारा यह दुनिया बनाई है-मनुष्य ने दुनिया बनाई ही नहीं है , जो गरीबी , अभाव , बेकारी ,दमन, उत्पीडन और असुरक्षा क़ि समस्याएँ हैं , इनका समाधान भी समाज को बनाने और चलने वाला यह आदमी ही करेगा |

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